लखनऊ शहर के ९० % रिहायशी इलाकों में सफाई कर्मचारियों द्वारा सरेआम अपने अपने इलाकों की बाकायदा नीलामी के साथ बिहार और असम से आये गरीब तबके के लोगों को ठेका उठाया जाता है। जो अपने मन मुताबिक कार्य करते है , सडकों पर तो कभी सफाई होती ही नहीं है बल्कि घरों से भी हफ्ते में एक या बहुत हुआ तो दो बार कूड़ा एकत्रित किया जाता है जिसके लिए प्रति परिवार २५० रुo से ३५० रुo इलाके के अनुसार वसूल किये जाते है। आपत्ति करने या शिकायत की बात करने पर सुनने को मिलता है कि " किससे शिकायत करोगे ? यह काम हम अकेले का नहीं , इसमे ऊपर तक सभी को हिस्सा जाता है और अगर ज्यादा नेतागिरी दिखाओगे तो पूरे मोहल्ले का कूड़ा यहीं आपके घर के सामने इकट्ठा होना शुरू हो जायेगा " अब सवाल यह उठता है कि ये " ऊपर वालों " का हेड कौन है ? हमारे मेयर साहब या हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी ? बात भी सही लगी क्योंकि सरेआम यह धंधा होने के बाद भी आज तक न तो मीडिया न प्रशाशन किसी ने भी चूं तक नहीं की। कुल मिला कर अपने घर के आगे कूड़े के ढेर की कल्पना मात्र से डर कर ३०० रु० महीना चुपचाप देने के बाद कूड़े की थैली को ऑफिस जाते समय साथ लेकर जाने और चुपचाप किसी नाली या खाली प्लाट में फैक देनेके आलावा शायद और कोई रास्ता भी लखनऊ की जनता के पास इस अंधेर नगरी में नहीं है।
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