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नमस्कार एवं दैनिक भास्कर के वरिष्ठजनों को प्रणाम, मेरा नाम मनस्वी ओझा है|आज एक उम्मीद के साथ यह सन्देश लिख रही हूँ और आशा है की इस पर ज़रूर कुछ कदम उठायाजायेगा|इस बात पर कोई संदेह नहीं है की दैनिक भास्कर समय-समयपर युवाओं और लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए नए कदम उठाता रहा है| लेकिन उसमे पारदर्शिता की कमी से जिन युवाओं को इसका लाभ मिलता है, उससे ज्यादा युवाओं को हतोत्साहित होना पड़ता है|अभी हाल ही में जयपुर सिटी भास्कर की ओर से “शिक्षकदिवस” के लिए चलाई गयी सन्देश प्रतियोगिता में मेरे स्वयं (मनस्वी ओझा) के साथ हुआवाकया इसका ताज़ा उदाहरण है| जिससे मेरी ही तरह शायद और भीयुवाओं के मनोबल को ठेस पहुचती है| विवरण इस प्रकार है की मैंनेभी इस प्रतियोगिता में शिक्षक के नाम सन्देश लिखकर ई-मेल किया था और कल शाम (4सितम्बर 2019) ही मुझे सिटी भास्कर जयपुर से ई-मेल, कॉल और मेसेज से सूचना मिली की मेरा सन्देश इस केटेगरी में द्वितीय स्थान परचयनित हुआ है| यह मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात थीक्योकि इससे पहले भी कई बार मैंने भास्कर द्वारा संचालित कई प्रतियोगिताओं में भागलिया था लेकिन कभी चयन नहीं हुआ था| इस बार चयनित होकर मेरे अलावा सभी परिवारजन भी बहुत खुश थे, और मैंने बताये अनुसार सभी जानकारी भी भास्कर को ई-मेल कर दी थी जो की आजदिनांक 5 सितम्बर 19 को जयपुर सिटी भास्कर में प्रकाशित होनी थी | लेकिन सुबह जबमैंने अख़बार देखा तो वह किसी और की लड़की की फोटो और सन्देश था| यह बहुत ही दुखद था की आपकी ओर से उठाये जाने वाले इस तरह की प्रतियोगिताओंमें हिस्सा लेने का हमारा निर्णय हमें ही हँसी का पात्र बना देगा| दरअसल, ये साफ़ है की आपकी प्रतियोगिताओ के निर्णय पहले ही निश्चित होते है, इसीलिए इस तरह एन मौके पर भी निर्णय बदलने का दिखावा करके आप 5वे स्थान केलिए चुनी हुई प्रति को तीसरा स्थान दे देते है और कहते है की निर्णायक मंडल काफैसला है| अनुरोध है आपसे की इस तरह कीप्रतियोगिताये आप शहर, या देश स्तर पर नाकरके अपने ऑफिस तक ही सीमित भी रख सकते है जिससे की आपके इनाम आपके लोगों में हीबंट जाये और बाकि युवाओ को निराशा भी नहीं झेलनी पड़े|मीडिया आम लोगों के लिए और आम लोगों की पहुँच तक होताहै, ना की इस तरह की हास्यास्पद कार्यों के लिए| दैनिक भास्कर एक बहुत बड़ा नाम है देश में तो इसी नाते आपकी भी ज़िम्मेदारीउतनी ही बड़ी बनती है की आप इस गरिमा को बनाये रखे और लोगों के मन में भी विश्वासऔर भरोसे को कायम रहने दे, जो की आज मेरा ख़त्म हो चुका है|चयन होना और नहीँ होना बाद की बात होती है लेकिन चयनित होकर भी ना होना मनोबल कोबहुत ठेस पहुँचाता है, विशेषकर तब जब युवा पुष्प से पौधा बनने की राह पर अग्रसर हो|भास्कर इस गलती को नहीं सुधार सकता तो शायद आने वालीपीढ़ी इस तरह की मीडिया से भरोसेमंद व्यव्हार नहीं कर पायेगी|सुधार की उम्मीद मेंमनस्वीओझा, जयपुर
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